Friday, July 15, 2011

अन्ना और अन्न


अन्ना ने भरी हुँकार,
ख़त्म करेंगे भ्रष्टाचार.
लोकपाल विधेयक उनका सपना,
हरामखोरों को होगा हटना.
सरकार भी हुई चौकन्ना, मिडिया ने किया है दिन-रात काम.
प्रभु वर्ग का मिला समर्थन, छा गए सर्वत्र अन्ना अन्ना.
लेकिन…
यदि अन्ना ने सोचा होता-
कौन है ये हरामखोर?
कौन है ये सरकारी चोर?
कैसे ये पनपते है?
कौन है इनका सरदार?
हमें पता है तुम्हे पता है, देश की जनता का हाल.
एक रुपईया चलता है,
शहर से गावों की ओर, चलते-चलते कटते-कटते,
दस पईसा उसे मिलता है.
कौन खा गया बड़ा हिस्सा,
जो है इसका जिम्मेदार,
वो ही है भ्रष्टाचारी,
वो ही बड़ा हरामखोर..
मेरे गाँव के मंगलू, रामू, नफीसा चाची और कलुआ काका.
चल देते है शहर की ओर,
दो रोटी के जुगाड़ में,
एक आशियाने के ख्वाब में,
जब वे गाँव से निकलते है, सोचते है यही हर बार.
मेरे गाँव के मंगलू, रामू. नफीसा चाची और कलुआ काका.
हाड़-तोड़ मेहनत वो करते,
सेठ को खुश रखते है,
काम से जब लौट के आते,
राशन लेने बाज़ार वो जाते.
जब पूंछते है अन्न का दाम, उनकी घिग्घी बांध जाती है, होश फाख्ता हो जाते है,
घर आकर चूल्हा जलाते,
पेट की वो क्षुधा मिटाते.
देश में अन्न की कमी नहीं है, अन्न मिल सकता है सबको.. बशर्ते…
अन्न भण्डारण हो जाये सही से, वितरण हो सही ढंग से, बिचौलियों को मार भगाओ,
यदि ये उत्पात मचाये,
इनकों फांसी पर लटकाओ, नफीसा, कलुआ की भूख मिटाओ,
भूख ‘वर्गीय’ नहीं होती,
ऐसा कहते है जो लोग,
उनके अपने स्वार्थ है, उन्हें चाहिए छप्पन भोग, इसी को कहते है वो भूख,
पर अपने मंगलू, रामू का क्या- यदि वो पा जाये दो रोटी,
साथ में हो दाल, तरकारी.
यही खाकर वो खुश रहते है,
यही है उनका छप्पन भोग.
उन्होंने भी अन्ना का नाम सुना है, सोच रहे है कि एक दिन-
वे अन्ना के पास जायेंगे, अपना दुखड़ा रोयेंगे,
कुछ तो अन्न पा जायेंगे,
वे सोचते रहते है कि-
अन्ना, अन्न का बड़ा ‘भाई’ है, गरीबों का गुसांई है.
भूख मिट गयी तो,
मिट जायेगा भ्रष्टाचार,
देश सम्रद्ध हो जायेगा,
न कोई बन्दूक उठाएगा,
न किसी को मौका मिलेगा,
कि करें त्रिशूल का व्यापार.
‘बहुजन’ की विनती है अन्ना से, कि अन्न की तरफ दे वे ध्यान, करोड़ों उठेंगे हाँथ,
दुवाये मिलेगी एक साथ,
कि अन्ना तुम संघर्ष करों, हम तुम्हारे साथ है -२

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