बीते रविवार 31 जुलाई को हंस पत्रिका के 25 साल पूरे होने पर दिल्ली के एक
सभागार में आयोजन किया गया. राजेन्द्र यादव से एक बातचीत-
सवाल- इस
पच्चीस साल की यात्रा में कोई ऐसा क्षण जिसकी टीस अभी भी मन में बनी हो?
जवाब-
कोई ऐसा क्षण नहीं है. जो होता भी है वह समय के साथ भूल जाता है. वक्त बीतने के
साथ उसके दंश खत्म हो जाते हैं. पच्चीस साल में आशा के क्षण भी और निराशा के भी
क्षण हैं.
सवाल-
फिर भी कोई एक ऐसी घटना?
जवाब- जब
बाबरी मस्जिद गिरी तब हमारी संपादकीय पर हंगामा हुआ. जब अमेरिका में ट्रेड टावर
जलाए गये तो उस वक्त भी हमारी संपादकीय पर हंगामा हुआ. पुलिस केस भी दर्ज करवाया
गया. हमने कहा था कि रावण के दरबार में हनुमान पहला आतंकवादी था. औरंगजेब के दरबार
में शिवाजी पहला आतंकवादी था. अंग्रेजों के दरबार में भगत सिंह पहला आतंकवादी था.
लेकिन क्योंकि हिन्दू धर्म के लोग प्राय: अनपढ़ होते हैं. मूर्ख लोग होते हैं. जढ़
होते हैं इसलिए उन्होंने विवाद पैदा कर दिया.
सवाल- हिन्दू धर्म पर
टिप्पणियों को लेकर आप विवादित रहे हैं....
जवाब- धर्म वर्म से हमारा बहुत
मतलब नहीं है. मैं अनास्तिक व्यक्ति हूं. लेकिन मैं यह मानता हूं कि जो कुछ जैसा
दिया गया है उसको स्वीकार करना बुद्धि का अपमान है. मैंने आपसे कह दिया कि दुनिया
इस तरह है और आपने मान लिया. अपनी बुद्धि का इस्तेमाल क्यों नहीं करते? जो जैसा है उसका दूसरा पक्ष
लाना हमारी जरूरत है.
सवाल- आप धर्म को व्यवस्था
मानते हैं या व्यक्तिगत आस्था?
जवाब- मैं धर्म को व्यक्तिगत
आस्था मानता हूं लेकिन इन लोगों ने इसे व्यवस्था बना दिया है.
सवाल- यह
दूसरा पक्ष राजेन्द्र यादव बताएं तो स्वीकार करने में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं
है?
जवाब-
ऐसा नहीं है. विरोध भी होता है. लेकिन जहां तक धर्मों की बात है तो सारे धर्म अतीत
जीवी हैं. इनके पास भविष्य नहीं है. भविष्य के नाम पर ये अतीत को ही लाएंगे. आज की
समाज संरचना के अनुसार हमारा भविष्य क्या होगा इसके लिए पुराण और रामायण तय नहीं
करेगा. मैं सख्ती से इसका विरोध करता हूं.
सवाल-
लेकिन स्मृतियां अगर अतीत में जाती हैं तो क्या करेंगें?
जवाब- वह
स्मृति अलग चीज है. फिर भी अगर वह स्मृति भी हमारे काम की नहीं है तो उसे लादकर हम
कहां कहां जाएंगे. भविष्य में यात्रा के लिए जो कुछ गैर जरूरी है उसे छोड़ना होगा
फिर वे चाहे जितनी महान या अच्छी ही क्यों न हो.
(साभार - visfot.com)
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