Wednesday, July 25, 2012

समाजवादी नगरी और नौसिखिया राजा



   अंग्रेजी के महान नाटककार विलियम शेक्सपियर ने अपने नाटक रोमियो-जूलियट में लिखा था कि नाम मे क्या रखा है? इंसान अपने गुणों और व्यवहार से जाना जाता है, लेकिन शेक्सपियर उत्तर प्रदेश में आकर गलत साबित होते है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में नाम और नामकरण दोनों ही महत्वपूर्ण और विवादस्पद हो गए है. उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल में 8 जिलो के नाम बदल दिए जिन्हें पूर्ववर्ती सरकार ने दलित-पिछडों के महापुरुषों के नाम पर रखा था, इसी के साथ-साथ छत्रपति साहू जी महाराज मेडिकल युनिवर्सिटी, लखनऊ का नाम बदलकर औपनिवेशिक नाम-किंग जार्ज मेडिकल युनिवर्सिटी रख दिया है. इससे पहले सपा सरकार ने डा. अम्बेडकर, कांशीराम, सावित्रीबाई फूले और महामाया आदि  नाम से चल रही विकास योजनाओं के नाम बदल दिए. नामकरण की राजनीति ने प्रदेश का माहौल फिर गरमा दिया है.

 हाल के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को भारी बहुमत मिला और अखिलेश यादव जो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के बेटे है, उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री बने. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने प्रारंभिक दौर में अपने चुनावी वायदों को निभाने का वादा कई बार दोहराए, मसलन किसानों को कर्ज माफ़ी, बेरोजगार भत्ता, छात्रों में लैपटाप वितरण, मुसलमानों को उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण. स्वच्छ एवं निर्भय प्रशासन, विकास की राजनीति आदि. लेकिन अभी तक उनकी सरकार किसी भी वादे पर खरी नहीं उतरी. हालाँकि अभी उन्हें बहुत कम समय मिला है, लेकिन जो भी फैसले लिए है, उस पर तो यही कहना पड़ेगा कि समाजवादी नगरी और नौसिखिया राजा. सबसे पहले संसदीय कार्यमंत्री आजम खान ने प्रदेश में 100% आरक्षण का बड़ा रोचक प्रस्ताव लाए, जिसे राजनीतिक विमर्शों में ज्यादा तवज्जो नहीं मिली. उसके बाद विधायकों को विधायक निधि से 20 लाख रुपये तक की कार खरीदने का प्रस्ताव आया, लेकिन भारी विरोध के चलते इसे वापस लेना पड़ा. प्रदेश में फिर से गुंडाराज फ़ैल रहा है जो कि स्वच्छ एवं निर्भय प्रशासन की बुनियाद के विपरीत है. और फिर बैठे-ठाले 8 जिलों का नाम बदलने पर अखिलेश यादव की प्रगतिशील और विकासवादी सोच पर सांवलिया निशान लग गया है.
उत्तर-प्रदेश के जिन आठ जिलों का पुनः नामकरण किया गया है वे इस प्रकार है- (पुराना नाम -नया नाम) छत्रपति शाहूजी महाराज नगर -गौरीगंज, पंचशील नगर –हापुड़,ज्योतिबा फूले नगर –अमरोहा, महामाया नगर –हाथरस, काशीराम नगर –कासगंज, रमाबाई नगर -कानपुर देहात, प्रबुद्ध नगर –शामली, भीमनगर –बहजोई. आजम खान, जो संसदीय कार्य मंत्री के साथ शहरी विकास मंत्रालय के के महकमें को संभल रहे है, ने कहा कि सपा सरकार ने इन शहरों की वही नाम रखना चाहती है जो लोगों को पसंद है. इस नामकरण का तीव्र विरोध भी शुरू हो गया है. प्रदेश के कई राजनैतिक तथा सामाजिक संगठनों ने सपा सरकार के इस कदम का विरोध किया है. अर्जक संघ ने सपा सरकार को ब्राह्मणवादी संस्कृति की पैरोकार तथा सवर्णों की अघोषित सरकार कहा है, बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने आरोप लगाया कि सपा सरकार  दलित-पिछडों के इतिहास को मिटाना चाहती है, जनता इसका जवाब देगी.
सबसे ज्यादा विरोध छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी का नाम बदलने पर हो रहा है.  आखिर एक सामाजिक  न्याय के चैम्पियन को साम्राज्यवादी किंग जार्ज से नीचे गिराने का क्या औचित्य हो सकता है. सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति के अग्रदूत ज्योतिबा फूले, सावित्रीबाई फूले, भारतरत्न डा. भीमराव अम्बेडकर और पंडिता रमाबाई आदि के नाम का विरोध क्यों. लखनऊ मेडिकल युनिवर्सिटी का नाम 2003 में छत्रपति साहू जी महाराज रखा गया. लेकिन मुलायम यादव ने 2004 में नाम बदल कर किंग जार्ज कर दिया. 2007 में मायावती ने फिर साहू जी महाराज से नामकरण किया और 5 साल बाद हम देखते है कि फिर से नाम बदला गया है. और अब  क्रिया-प्रतिक्रिया की राजनीति का नेतृत्व पिता के बाद मुंह में चांदी का चम्मच लिए अखिलेश यादव कर रहे है. इसी राजनीति के चलते महामाया नगर के लोग 5 बार अपने आपको हाथरस-महामायानगर के बीच झूलते हुए पाया. पिछले साल उत्तर प्रदेश में तीन नए जिलो का सृजन हुआ- प्रबुद्धनगर, भीमनगर और पंचशीलनगर. इन जिलों का नामकरण महामना गौतम बुद्ध और भारतरत्न डा. अम्बेडकर के नाम पर किया गया.    
महामानव बुद्ध जो प्रज्ञा, मैत्री और ‘सचेत समता’ के वाहक और दुनिया के प्रथम साम्यवादी है तथा स्वतंत्रता-समानता-बंधुता और शिक्षित बनो-संघर्ष करो और संगठित रहो का सन्देश देने वाले, शोषित जनता को सामाजिक-राजनैतिक-सांस्कृतिक गुलामी से आजादी दिलाने वाले डा. भीमराव अम्बेडकर है. इन जिलों के नामकरण का आने वाले दिनों में एक ऐतिहासिक महत्व होता लेकिन उत्तर-लोहियावादी समाजवादी सरकार के मुखिया को ये रास नहीं आया और 1 साल के अंदर ही इन जिलों के नाम बदल दिए. दया आती है ऐसे समाजवादियों पर जो स्वयं को पिछडों, शोषितों और किसानों का रहनुमा बताते है लेकिन जब इन्ही शोषितों और किसानों के वैचारिक और सांस्कृतिक अस्तित्व की बात आती है तो ये पोस्ट-लोहियईट समाजवादी उस समय छुद्र राजनैतिक लाभ के लिए ब्राह्मणवादी संस्कृति के पैरोकार बन जाते है. इस बात पर कोई सच्चाई नहीं है कि ब्राह्मण तथा सवर्ण ही ब्राह्मणवादी होते है, बल्कि शोषित तथा शूद्र वर्ग के लोग भी ब्राह्मणवादी हो सकते है जो उठने-बैठेने, चलने-फिरने, खाने और बोलने में ऊँच-नीच का व्यवहार करते है. वैचारिक तथा सांस्कृतिक मामले में सपा सरकार ने कोई ठोस काम नहीं किए. जब लखनऊ मेडिकल यूनिवर्सिटी का नाम छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी रखा गया तो मुलायम यादव की प्रतिक्रिया थी- ‘ये शाहू-वाहू कौन है’. तब सोचिये ज्योतिबा फूले, छत्रपति शिवा जी महाराज, रामासामी पेरियार जो पिछड़े वर्ग से आते है, उनके बारे में क्या सोचते होंगे.
 उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए यहाँ भी पिछड़े वर्ग के नायकों ने ब्राह्मणवाद से डटकर मुकाबला किया और मानववादी संस्कृति को स्थापित करने में जान लगा दी. महामना रामस्वरूप वर्मा जो अर्जक संघ के संस्थापक और चौधरी चरण सिंह की सरकार में वित्त मंत्री रहे, वे मरते दम तक समाजवादी राजनीति और मानववादी संस्कृति के लिए लड़े. वित्त मंत्री रहते वक्त उन्होंने ये आदेश जारी किया था कि राज्य के सभी सरकारी पुस्कालयों में अम्बेडकरवादी साहित्य रखा जाये. ललई यादव जिन्होंने ब्राह्मणवाद के खिलाफ पूरे देश में टायर की चप्पले पहनकर प्रचार-प्रसार किया. वे कट्टर अर्जकी थे और पेरियार से बहुत प्रभावित थे. ललई जी ने तमिलनाडु जाकर तमिल भाषा सीखी और पेरियार की The Ramayana: A True Reading का सच्ची रामायण के रूप में हिन्दी अनुवाद किया. जब इस किताब को 1968 में उत्तर प्रदेश में प्रकाशित करवाया तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस किताब पर बैन लगा दिया और ललई यादव पर देशद्रोह का मुकदमा आरोपित हुआ. उस समय अर्जक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामस्वरुप वर्मा ने ललाई यादव का पूरा सहयोग दिया. 
 आखिरकार 1971 में फैसला ललई यादव के पक्ष में गया. क्रिमिनल मिसनेसियस अप्लिकेशन के अंतर्गत सेक्शन 19 B के तहत निर्णय हुआ कि सच्ची रामायण की जब्ती की आज्ञा निरस्त की जाती है और उत्तर-प्रदेश सरकार अपिलांट ललई यादव को हर्जाने के रूप में 300  रु. दे. उसके बाद ललई यादव पूरे देश में पेरियार ललई यादव के नाम से जाने गए. संयोग से ये दोनों महामानव रमाबाई नगर के पिछड़े वर्ग (रामस्वरूप वर्मा कुर्मी जाति से पेरियार ललई यादव जाति से सम्बन्ध रखते है) से आते है. क्या अखिलेश यादव को इन महामानवों के बारे में पता है?
 क्या शोषित क्रांति के अगुवा जगदेव प्रसाद कुशवाहा और उ.प्र. के प्रथम पिछड़ा वर्ग के सदस्य शिवदयाल चौरसिया के इतिहास को जानते है? शायद नहीं!! ये पोस्ट-लोहियाईट समाजवादियों ने जानने की कोशिश भी नहीं करेंगे. ऐसे में भविष्य की बुनियाद का ताना-बाना कैसे बुनेंगे ये समाजवादी! सपा सरकार जनेश्वर मिश्रा के नाम पर 500 एकड़ का पार्क बनवायेगी, लेकिन उसे पिछडों-शोषितों के महापुरुषों के नाम पर बने पार्को से आपत्ति है. एक समाजवादी सरकार को ये सौतेला व्यवहार शोभा नहीं देता. उसे अन्य समाजवादी चिंतकों रामस्वरूप वर्मा, जननायक कर्पूरी ठाकुर, भारत लेनिन-जगदेव प्रसाद कुशवाहा और पेरियार ललई यादव के नाम पर जिलों और सरकारी योजनाओं का नामकरण करना चाहिए.
 समाजवादी विचारधारा के दो कट्टर दुश्मन होते है – उच्च-वर्गीय अर्थव्यवस्था और उच्च-वर्णीय संस्कृति. इन दोनों दुश्मनों से लड़ने का माद्दा रखना होगा. अतः प्रगतिशील तबका सपा सरकार से अपेक्षा रखता है कि बदले की राजनीति न करके बदलाव की राजनीति को महत्व दे और प्रदेश के विकास को नई दिशा प्रदान करे.