Sunday, December 25, 2011

आरक्षण और राजनीतिक जमूरें



आरक्षण और राजनीतिक जमूरें.
जैसे कि कहा जाता है कि सम्पूर्ण न्यायपालिका में 100 के आस-पास सवर्ण परिवारों का कब्ज़ा है, शिक्षा संस्थानों में 90% देववाणी बोलने वालो का कब्ज़ा है, निजी क्षेत्र तो इन्ही लोगों के लिए निजी कर दिया गया है. विदेशी व्यापार में इनके आस -पास कोई टिकता नहीं और राजनीति में चाणक्य के वंशजों से कोई बड़ा नहीं.
UPA कैबिनेट द्वारा सामाजिक तथा  शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित 27% कोटे में 4.5% सब-कोटा अल्पसंख्यकों (Muslims, Sikhs, Christians, Buddhists and Zoroastrians (Parsis)  के लिए आरक्षित कर दिया है. कांग्रेस कि कोशिश है कि किस तरह से लोकपाल मुद्दे  से बचा जाये और आने राज्यों के विधानसभा  चुनावों में स्थिति मजबूत करें. मामला बिलकुल साफ़ है कि जब तक सड़क से संसद तक विरोध और समर्थन का दौर  शुरू होगा तब तक विधानसभा चुनाव निबट गए होंगे. कांग्रेस की तो यही बिसात है.
लेकिन इस फैसलें में विरोधाभास बहुत है- एक तो भारतीय संविधान के अनुसार धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता तो दूसरी ओर अल्पसंख्यकों की आबादी का बिना सामाजिक-आर्थिक वर्गीकरण किये बिना आरक्षण देना स्वीकार्य नहीं होगा. अल्पसंख्यक  समुदाय में सबसे बड़ा हिस्सा मुसलमानों का है लेकिन क्या सभी मुसलमान को आरक्षण मिलना चाहिए. मुसलमानों में शेख-सैय्यद-मुग़ल -पठान  आदि वैसे ही संपन्न है जैसे हिन्दू धर्म में ब्रह्मण, क्षत्रिय और वैश्य.  क्या सभी मुसलमान, सिख, इसाई,बुद्धिस्ट और पारसी 'सामाजिक तथा शैक्षणिक  रूप से पिछड़े हुए है? शायद नहीं.
दूसरी तरफ राजनीतिक जमूरों का वाग्जाल जोरों पर है. कोई समर्थन कर रहा है कोई विरोध कर रहा है. लेकिन कोई ये नहीं कह रहा कि आरक्षण का दायरा इस आधार पर निश्चित होना चाहिए,कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी.  इन जमूरों को (बेनी, लालू. मुलायम, नितीश, शरद आदि) को शायद और भी बुरी दशा का इंतज़ार है.

Tuesday, December 6, 2011

नयी सरकार



न मंदिर है, न मस्जिद है, न ही धर्म के ठेकेदार.
सामाजिक समरसता का आज है ये त्यौहार,
आओ रामू, आओ रहीम, सब मिलकर करों ये प्रण,
सामाजिक न्याय की अलख जगाओ,
 बाबा साहेब को कर के नमन.


पढने और पढ़ाने को,
हम आज ये मन में ठानेगे.
रहेंगे हम कर्मशील सदा,
पल भर भी हम न गवाएंगे.
हमको करना है काम बहुत,
इस देश की धारा बदलेंगे.

हम गड़े मठो को तोड़ेंगे,
इतिहास की धारा मोडेंगे.
रचनी है अब नयी रचना,
जब अपनी कलम से हम लिखेगे.

शिक्षित बनकर संघर्ष करेंगे,
और संगठित हो जायेंगे.
आओ बहना, आओ साथियों,
हम नया समाज बनायेंगे.

ज्ञान की बहेगी सदानीरा,
अत्त दीपो भव फैलायेंगे.
मन को निर्मल कर के हम,
समरस समाज बनायेंगे.

एक ऐसा हो परिवार जहाँ,
कोई भेद-भाव हो न वहां.
क्या ऊँच-नीच, क्या अगड़ा-पिछड़ा,
जहाँ सबल और निर्बल में, 
कभी न हो कोई झगडा.
जहाँ समता की चाह होगी,
वहीँ पे नयी राह होगी.
हम नयी राह बनायेंगे.
हम ऐसा परिवार बनायेंगे.

सत्ता की हमको चाह नहीं, 
सिद्धांतो को जीते जायेंगे,
फूले, अम्बेडकर, पेरियार को 
हम अपने नायक बनायेंगे,
माता सावित्री, जिजाऊ, झलकारी,
इन्हें दिल में बसाते जायेंगे.
रामस्वरूप, जगदेव, कांशीराम को जननायक मानकर 
बहुजनों को संगठित कर जायेंगे,

जब बहुजन संगठित हो जायेंगे,
तब व्यवस्था सुगठित हो जाएगी,
तब ऐसी सरकार बनायेंगे,
जिसमे मार्टिन और मंडेला,
की सोच का होगा बोलबाला.
देंगे नया सन्देश दुनिया को,
देंगे नयी राह दुनियां को.
दुनियां हमसे सीखेगी,
हम दुनिया से सीखेगे.
हम ऐसी सरकार बनायेंगे-२

हम सब  को करना है काम बहुत,
इस देश की धारा बदलेंगे.
शिक्षित बनकर संघर्ष करेंगे,
और संगठित हो जायेंगे.
आओ बहना, आओ साथियों,
हम नया समाज बनायेंगे-2