न मंदिर है, न मस्जिद है, न ही धर्म के ठेकेदार.
सामाजिक समरसता का आज है ये त्यौहार,
आओ रामू, आओ रहीम, सब मिलकर करों ये प्रण,
सामाजिक न्याय की अलख जगाओ,
बाबा साहेब को कर के नमन.
बाबा साहेब को कर के नमन.
पढने और पढ़ाने को,
हम आज ये मन में ठानेगे.
रहेंगे हम कर्मशील सदा,
पल भर भी हम न गवाएंगे.
हमको करना है काम बहुत,
इस देश की धारा बदलेंगे.
हम गड़े मठो को तोड़ेंगे,
इतिहास की धारा मोडेंगे.
रचनी है अब नयी रचना,
जब अपनी कलम से हम लिखेगे.
शिक्षित बनकर संघर्ष करेंगे,
और संगठित हो जायेंगे.
आओ बहना, आओ साथियों,
हम नया समाज बनायेंगे.
ज्ञान की बहेगी सदानीरा,
अत्त दीपो भव फैलायेंगे.
मन को निर्मल कर के हम,
समरस समाज बनायेंगे.
एक ऐसा हो परिवार जहाँ,
कोई भेद-भाव हो न वहां.
क्या ऊँच-नीच, क्या अगड़ा-पिछड़ा,
जहाँ सबल और निर्बल में,
कभी न हो कोई झगडा.
जहाँ समता की चाह होगी,
वहीँ पे नयी राह होगी.
हम नयी राह बनायेंगे.
हम ऐसा परिवार बनायेंगे.
सत्ता की हमको चाह नहीं,
सिद्धांतो को जीते जायेंगे,
फूले, अम्बेडकर, पेरियार को
हम अपने नायक बनायेंगे,
माता सावित्री, जिजाऊ, झलकारी,
इन्हें दिल में बसाते जायेंगे.
रामस्वरूप, जगदेव, कांशीराम को जननायक मानकर
बहुजनों को संगठित कर जायेंगे,
जब बहुजन संगठित हो जायेंगे,
तब व्यवस्था सुगठित हो जाएगी,
तब ऐसी सरकार बनायेंगे,
जिसमे मार्टिन और मंडेला,
की सोच का होगा बोलबाला.
देंगे नया सन्देश दुनिया को,
देंगे नयी राह दुनियां को.
दुनियां हमसे सीखेगी,
हम दुनिया से सीखेगे.
हम ऐसी सरकार बनायेंगे-२
हम सब को करना है काम बहुत,
इस देश की धारा बदलेंगे.
शिक्षित बनकर संघर्ष करेंगे,
और संगठित हो जायेंगे.
आओ बहना, आओ साथियों,
हम नया समाज बनायेंगे-2
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