सच्चे देशभक्त, साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक, पसमांदा समाज के रहबर, मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ खड़े होने वाले पहले मुसलमान, पहला राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले जनाब अब्दुल कय्यूम अंसारी को उनके जन्मदिन पर याद करते हुये...
कय्यूम साब का जन्म 1 जुलाई सन 1905 को बिहार के डेहरी ऑन सोन में हुआ था। उनकी शिक्षा देश के तीन बड़े विश्वविद्यालयो-इलाहाबाद विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हुयी थी और अपने समय के बिहार के शीर्ष लीडरान में से एक थे।
कय्यूम साब छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे। 16 साल की अवस्था मे आजादी की लड़ाई में जेल गये थे। असहयोग आंदोलन और खिलाफत मूवमेंट में सक्रिय रहे। कय्यूम साब आजादी के आंदोलन में अपने इलाके में यूथ लीडर के रूप में कांग्रेस का नेतृत्व किया।
कय्यूम साब जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत को सिरे से नकार दिया। और 1937-38 में मोमिन मूवमेंट का हिस्सा बने। मोमिन मूवमेंट के द्वारा OBC मुस्लिम के बीच सामाजिक-राजनीतिक-शैक्षिक जागरुकता फैलाई।
कय्यूम साब ने असहयोग आंदोलन में प्रतिभागिता की। आंदोलन के चलते जिन छात्रों की पढ़ाई छूट गयी थी, उनके लिये राष्ट्रीय स्कूल खोला। कय्यूम साब एक पत्रकार, लेखक और कवि भी थे। वे उर्दू साप्ताहिक 'अल-इस्लाह' (The Reform) और उर्दू मासिक 'मसावात' के संपादक भी थे।
कय्यूम साब के नेतृत्व में उनकी पार्टी 1946 में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी और मुस्लिम लीग के खिलाफ 6 सीटों में जीत दर्ज किया।
कय्यूम साब बिहार की पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुये और लगातार 17 साल तक कांग्रेस की सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे। कय्यूम साब बिहार के सबसे ज्यादा सम्मानित और कद्दावर कैबिनेट मंत्रियों में से एक थे।
कय्यूम साब कांग्रेस को राजनीतिक रूप से समर्थन देने के लिये अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया लेकिन पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये सामाजिक आंदोलन के रूप में मोमिन मूवमेंट को जिंदा रखा।
कय्यूम साब देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने के लिये प्रतिबद्ध थे। वे पहले मुस्लिम लीडर थे जो मुस्लिम लीग के खिलाफ खड़े हुये। मुस्लिम इलाको में हिन्दु समुदाय के साथ बदसलूकी होने पर लीग की जमकर मजम्मत की। वे कश्मीर का भारत में विलय के पक्षधर थे। उन्होंने 'आजाद कश्मीर' के खिलाफ 1957 में 'इंडियन मुस्लिम यूथ कश्मीर फ्रंट' की स्थापना की थी। इसके पहले भी उनकी देशभक्ति की मिसाल देखी जा सकती है हैदराबाद विलय के दौरान। कय्यूम साब ने निज़ाम के अलगाववादी रवैये के खिलाफ आंदोलन किया और मुस्लिम समाज से निजाम की निजी सेना 'रजाकरों' के खिलाफ सरदार पटेल के हैदराबाद विलय के प्रयास का समर्थन देने को कहा।
कय्यूम साब ने भारत को अपनी मातृभूमि माना, और इसी में दफन होना चाहते थे। वे धार्मिक आधार पर राष्ट्र-विभाजन का विरोध किया। साथ ही वे देश के पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिये भी चिंतित थे। ये उन्ही की देन है कि आज पसमांदा विमर्श राष्ट्रीय फलक पर पहुँचा है। देश के प्रथम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना में उनकी अतुलनीय भूमिका है।
कय्यूम साब ने अपनी अन्तिम सांसे जन-कल्याण करते हुये हुयी। 1973 में उनके इलाके में डेहरी-आरा कैनाल टूट गयी थी। उससे पूरे। इलाके में अव्यवस्था फैल गयी। कय्यूम साब ने बढ़ के जिम्मेदारी ली। बेघर हुये लोगों को आवास और भोजन की व्यवस्था की
इसी बीच उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। 18 जनवरी 1973 को कय्यूम साब ने अंतिम सांसे ली।
कय्यूम साब भारत माँ के अमर सपूत है।देश की एकता-अखंडता और समाज की प्रगति के लिये हमेशा चिंतित रहे। पसमांदा समाज के लिये जो अभूतपूर्व कार्य किये, इससे कृतार्थ होकर उन्हें फक्र-ए-क़ौम, बाबा-ए-कौम की उपाधि से नवाजा गया। भारत सरकार ने भी उनके महान योगदान को याद किया।सन 2005 में भारत सरकार ने उनके सामाजिक-राजनैतिक-शैक्षिक योगदान को याद करते हुये उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
कय्यूम साब का जन्म 1 जुलाई सन 1905 को बिहार के डेहरी ऑन सोन में हुआ था। उनकी शिक्षा देश के तीन बड़े विश्वविद्यालयो-इलाहाबाद विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हुयी थी और अपने समय के बिहार के शीर्ष लीडरान में से एक थे।
कय्यूम साब छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे। 16 साल की अवस्था मे आजादी की लड़ाई में जेल गये थे। असहयोग आंदोलन और खिलाफत मूवमेंट में सक्रिय रहे। कय्यूम साब आजादी के आंदोलन में अपने इलाके में यूथ लीडर के रूप में कांग्रेस का नेतृत्व किया।
कय्यूम साब जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत को सिरे से नकार दिया। और 1937-38 में मोमिन मूवमेंट का हिस्सा बने। मोमिन मूवमेंट के द्वारा OBC मुस्लिम के बीच सामाजिक-राजनीतिक-शैक्षिक जागरुकता फैलाई।
कय्यूम साब ने असहयोग आंदोलन में प्रतिभागिता की। आंदोलन के चलते जिन छात्रों की पढ़ाई छूट गयी थी, उनके लिये राष्ट्रीय स्कूल खोला। कय्यूम साब एक पत्रकार, लेखक और कवि भी थे। वे उर्दू साप्ताहिक 'अल-इस्लाह' (The Reform) और उर्दू मासिक 'मसावात' के संपादक भी थे।
कय्यूम साब के नेतृत्व में उनकी पार्टी 1946 में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी और मुस्लिम लीग के खिलाफ 6 सीटों में जीत दर्ज किया।
कय्यूम साब बिहार की पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुये और लगातार 17 साल तक कांग्रेस की सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे। कय्यूम साब बिहार के सबसे ज्यादा सम्मानित और कद्दावर कैबिनेट मंत्रियों में से एक थे।
कय्यूम साब कांग्रेस को राजनीतिक रूप से समर्थन देने के लिये अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया लेकिन पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये सामाजिक आंदोलन के रूप में मोमिन मूवमेंट को जिंदा रखा।
कय्यूम साब देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने के लिये प्रतिबद्ध थे। वे पहले मुस्लिम लीडर थे जो मुस्लिम लीग के खिलाफ खड़े हुये। मुस्लिम इलाको में हिन्दु समुदाय के साथ बदसलूकी होने पर लीग की जमकर मजम्मत की। वे कश्मीर का भारत में विलय के पक्षधर थे। उन्होंने 'आजाद कश्मीर' के खिलाफ 1957 में 'इंडियन मुस्लिम यूथ कश्मीर फ्रंट' की स्थापना की थी। इसके पहले भी उनकी देशभक्ति की मिसाल देखी जा सकती है हैदराबाद विलय के दौरान। कय्यूम साब ने निज़ाम के अलगाववादी रवैये के खिलाफ आंदोलन किया और मुस्लिम समाज से निजाम की निजी सेना 'रजाकरों' के खिलाफ सरदार पटेल के हैदराबाद विलय के प्रयास का समर्थन देने को कहा।
कय्यूम साब ने भारत को अपनी मातृभूमि माना, और इसी में दफन होना चाहते थे। वे धार्मिक आधार पर राष्ट्र-विभाजन का विरोध किया। साथ ही वे देश के पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिये भी चिंतित थे। ये उन्ही की देन है कि आज पसमांदा विमर्श राष्ट्रीय फलक पर पहुँचा है। देश के प्रथम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना में उनकी अतुलनीय भूमिका है।
कय्यूम साब ने अपनी अन्तिम सांसे जन-कल्याण करते हुये हुयी। 1973 में उनके इलाके में डेहरी-आरा कैनाल टूट गयी थी। उससे पूरे। इलाके में अव्यवस्था फैल गयी। कय्यूम साब ने बढ़ के जिम्मेदारी ली। बेघर हुये लोगों को आवास और भोजन की व्यवस्था की
इसी बीच उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। 18 जनवरी 1973 को कय्यूम साब ने अंतिम सांसे ली।
कय्यूम साब भारत माँ के अमर सपूत है।देश की एकता-अखंडता और समाज की प्रगति के लिये हमेशा चिंतित रहे। पसमांदा समाज के लिये जो अभूतपूर्व कार्य किये, इससे कृतार्थ होकर उन्हें फक्र-ए-क़ौम, बाबा-ए-कौम की उपाधि से नवाजा गया। भारत सरकार ने भी उनके महान योगदान को याद किया।सन 2005 में भारत सरकार ने उनके सामाजिक-राजनैतिक-शैक्षिक योगदान को याद करते हुये उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
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