Saturday, August 4, 2012

भोपाल से लन्दन तक

गगन को सलाम,
विजय को सलाम,
साइना तुझे भी सलाम.
लेकिन असमंजस में हूँ  मै,

एक तरफ है लन्दन ,
दूसरी तरफ है भोपाल.
और दोनों जुड़ जाते है,
एक साम्राज्यवादी कंपनी-
डाव केमिकल्स से.
जो हत्यारी है,
उन हजारो भोपालियों की,
जिनके जख्म आज भी जिन्दा है.
गुहार जारी है उनकी,
इस देश के मालिकों से,
और उस हत्यारी कंपनी से.
जो दे रही हे मेडल,
गगन को,
विजय को,
और साइना को.

खुश है सारा है देश और देश के लोग,
लोगो को देखकर मुस्कराते चेहरे ,
हम भी तैरा  लेते है,
एक मुस्कान होंठो में.

फिर गुजरता है,
एक उदास हवा का झोंका,
कह रहा है 
मानवता के दुश्मन,
पूँजी के गुलाम,
सर्वत्र  मौजूद है,
भोपाल से लन्दन तक.

वे हंसते है,
वे हंसाते है,
वे मेडल देते है,
वे ले भी लेते है
जब वे चाहे-
हमारी सस्ती जिन्दगी भी.







1 comment:

  1. लन्दन ओलम्पिक के अंतिम दिन तक सभी प्रगतिशील- झोलाछाप बुद्धिजीवियों के ऊपर राष्ट्रवाद सर चढ़कर बोलेगा, लेकिन इसके तुरंत बाद वे भोपाल की तरफ रुख कर लेंगे

    ReplyDelete