Tuesday, August 23, 2011

पोगापंथी और गैर-बराबरी को मिटाए बिना भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता!


देश के नब्बे सैकड़ा शोषित समाज के पहरुए, अर्जक संघ के संथापक तथा नव-मानववाद के प्रणेता रामस्वरूप वर्मा जी के जन्म-दिन (22 अगस्त-क्रांति दिवस) के   अवसर पर-

पोगापंथी और गैर-बराबरी को मिटाए बिना भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता!
ब्राह्मणवाद का मूल आधार पुनर्जन्म और भाग्यवाद है. पुनर्जन्म और भाग्यवाद पर टिका ब्राह्मणवाद शुरू से ही यह कल्पना कर के चलता है कि हरामखोरी अच्छे भाग्य की निशानी है . यदि कोई राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर सोना, चांदी, अफीम, चरस और दूसरे सामानों का तस्कर व्यापार करता है तो उसे भयंकर भ्रष्टाचारी कहा जाना चाहिए, लेकिन ब्राह्मणवाद की कृपा से उसका यह राष्ट्रद्रोह पुनर्जन्म के कारण मिले अतरिक्त लाभ से छिप जाता है. लोग इस पर विचार ही नहीं करना चाहते है कि अमुक व्यक्ति राष्ट्रद्रोह कर रहा है.वह तो इस तरह से कमायें नाजायज धन को देखकर यही कहता है कि 'देखो भगवान कैसे छप्पर फाड़ के  दे रहा है'. पूर्वजन्म की  कमाई का फल है कि बिना परिश्रम के अमुक आदमी धनी ही गया, अपना अपना भाग्य है....  एक हम लोग है जो गर्मी, जाड़ा, बरसात में काम करके शरीर को खपायें दे रहे है फिर भी भर पेट भोजन नहीं पाते. पुनर्जन्म और भाग्यवाद ने लोगो की चेतना को इतना  नष्ट किया है कि राष्ट्रद्रोह से कमायें धन को भी वे भाग्य का फल समझते है, इसी प्रकार रिश्वतखोरी भी राष्ट्रद्रोह है. देने वाला तो मज़बूरी में देता है पर लेने वाला अपने अधिकार का दुरूपयोग करके ही रिश्वत पाता है,
लेकिन वाह रे ब्राह्मणवाद! रिश्वतखोर के भाग्य में ऐसे ही धन कि आमद लिखी है, ऐसा कहा जाता है, पिछेले जन्म का पुण्य है जिससे धन अंधाधुंध आ रहा है, रिश्वतखोर की कर्तव्यहीनता और उसका राष्ट्रद्रोह ब्राह्मणवाद के आंचल में छिप जाता है और उसका कुकर्म पिछले जन्म के पुण्य के रूप में समझा जाता है.
लोगो को धोखा देकर (बाबा, महात्मा का स्वांग रचकर) लूटने वाले हो,या औरतें बेचकर, डकैती करके कानून तोड़कर, झूठ बोलकर पैसा कमाने वाले हो, इन पर ब्राह्मणवादी की निगाह नहीं जाती है, ये दूसरी बात है कि ये भगवान से निरीह की भांति प्रार्थना करते है कि 'हे भगवन! इसे इसके पापों का फल जल्दी दे, वे स्वयं भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास नहीं करेंगे, भगवान से प्रार्थना करके कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेंगे. यदि भाग्य, भगवान का चक्कर न होता तो ऐसे राष्ट्रद्रोही, कर्तव्यहीन और कुकर्मी और भ्रष्टाचारी को समाज ही दण्डित कर देता फिर भ्रष्टाचार करने कि हिम्मत किसी में नहीं होती. लेकिन आज तो छला जाने वाला व्यक्ति भी अपनी ऑंखें बंद कर लेता है, क्योंकि वो भ्रष्टाचारी को अदालत में सौपने कि बजाय भगवान को सौप देता है कि वह इंसाफ करेगा. अगर भगवान ही सबके कुकर्मो का फल  देने के लिए है तो फिर अदालते क्यों बनायीं गयी है, क्यों इन पर करोडो  खर्च हो रहा है? ख़त्म कर दो इन्हें !!
क्योंकि अदालतों का होना भी भगवान की इच्छा का फल है बिना उसकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिल सकता . यदि भ्रष्टाचार और कुकर्म अधिक बढ़ते है तो मनुष्य कर भी क्या कर सकता है ये भगवान की इच्छा है. हाँ इतना अवश्य है कि
'जब जब होय धर्म की हानी, बाढ़हि  अधम असुर अभिमानी, तब तब प्रभु धर विविध शरीर, हरहिं सदा सुर सज्जन पीरा' क्योंकि गीता में 'भोगवान' कृष्ण कहते है-
'यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत, अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मन स्राजम्यहम'. तो फिर क्या पड़ी है इन ब्रह्मनवादियों को कि  वे भ्रष्टाचार और कुकर्मों को रोंके.यदि भ्रष्टाचार बाधा है तो ये कलियुग का प्रभाव है और इसके नाश के लिए भगवान का दसवां अवतार 'कल्कि' नाम से होने वाला है . भविष्य पुराण में और अनेक ब्राह्मणवादी ग्रंथो में लिखा है फिर ब्राह्मणवाद के शिकार लोग भ्रष्टाचार का प्रतिरोध क्यों करने लगे.
कितनी बेबसी लादी है इस ब्राह्मणवाद ने.मात्र दिमागी काम करने वाले वकील, डाक्टर और IAS जैसे लोग बिना किसी अनुपात के धन कमायें. जो प्रतिभा समाज सेवा के लिए है उसका सदुपयोग होना ही चाहिए लेकिन इतना बड़ा अंतर आमदनी में हो तो हरामखोरी तो पनपेगी ही. लेकिन इस देश में इस पर विचार नहीं होता कि किसान हल चला कर ईमानदारी से उत्पादन करता है और समाज का पेट पलता है, लेकिन जो रंच मात्र भी उत्पादन नहीं करते उनकी आमदनी इस हाड़तोड़ आदमी से कई गुना क्यों, यदि किसान IAS का काम आसानी से नहीं कर सकता है तो IAS भी तो किसान का काम आसानी से नहीं कर सकता है, काम की गरिमा के अनुसार उत्पादन के कारण किसान प्रथम  है. यदि सभी कामो को आवश्यक मानते हुए बराबर कहा जाये तो आमदनी में इतना फर्क क्यों? यह भी भगवान का बनाया हुआ है कि मनुष्य का,ब्राह्मणवादी इस पर विचार नहीं करते, क्योंकि उनकी आँखों पर  पुनर्जन्म और भाग्यवाद का रंगीन चश्मा चढ़ा हुआ है, ब्राह्मणवाद हरामखोरी को बढ़ावा देने वाला रहा है इसीलिए जब उनके पुनर्जन्म और भाग्यवाद पर चोट पहुंचती है तो वे तिलमिला उठते है.

गुणों का आदर करने वाले और अवगुणों के खिलाफ बगावत करने वाले समाज में भ्रष्टाचार को स्थान नहीं मिलता. किन्तु ब्राह्मणवाद में तो- पतितोअपि द्विजः श्रेष्ठा न च शूद्रो जितेन्द्रियः / पतित यानि अधर्मी ब्राह्मण श्रेष्ठ है किन्तु इन्द्रियों को जीतने वाला शूद्र श्रेष्ठ नहीं हो सकता. पुनर्जन्म और भाग्य को जब तक प्रतिभा का आधार मानेंगे तब तक ब्राह्मणवाद का नाश नहीं होगा, आज प्रशासन में ब्रह्मनवादियों का वर्चस्व है और वे पतित होते हुए भी भी श्रेष्ठ है, उनका भ्रष्टाचार अबाध गति से चलेगा, क्योंकि ये भ्रष्ट होते हुए भी शोषितों से श्रेष्ठ है. उस शूद्र से भी जो कर्तव्यपरायण और सदाचारी है, बलिहारी है इस ब्राह्मणवाद की! जब तक मानववादी जज न होऐसी व्यवस्था दे ही नहीं सकता है जो की ब्राह्मणवाद के ऊपर एक श्लोक  ने दी हो. यही क्यों?.. तुलसीदास ने इनकी मुर्खता को ढकने का प्रयास किया है - 'पूजिय विप्र शील गुण हीना, शूद्र न गुण गण ज्ञान प्रवीना/ जिस समाज में गुणों का आदर नहीं होगा तो वो भ्रष्टाचारी समाज ही होगा. आज जब किसी शूद्र की लड़की के साथ ब्राह्मणवादी बलात्कार,यौन शोषण करते है तो ये कहा जाता है की ऐसा तो होता आया है जाने भी दो यारों. यदि किसी ब्राह्मणवादी की लड़की के साथ कोई शूद्र या म्लेच्छ ख़ुशी से शादी कर ले तो इनमे हाहाकार मच जायेगा, श्रुति केस अभी लोगो को भूला नहीं होगा. यही है ब्राह्मणवाद की महिमा, उसमे दोष की कोई परिभाषा नहीं. जन्म से ही उत्पन्न जाति की परिभाषा है फिर गुणों का आदर कैसे समाज में हो सकता है?? भ्रष्टाचार का भयंकर बोलबाला प्रशासन में है, इसे ब्रह्मान्वादियों ने बढ़ावा दिया है, उच्च श्रेणी की नौकरियों में शूद्रों की संख्या १० % से अधिक नहीं है जबकि शूद्र उत्पादक वर्ग है और आबादी 90% है.
परम मेधावान युवा भले ही  अच्छे पद में पहुँच जाये, नहीं तो शूद्रों को प्रशासन में लेने की हिचक सदैव रहती है. देश के प्रशासन में आज तक जितने भी घोटालें हुए है उनको इसलिए दबा दिया गया क्योकि घोटाले के दोषी ब्राह्मणवादी थे (बोफोर्स कांड,ताबूत घोटाला, तरंगो का घोटाला- 2 G spetrum & S-band spectrum case, राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श सोसईटी इत्यादि). इसलिए प्रसाशन में ज्यादा से ज्यादा शूद्रों को लेना चाहिए. वैसे तो वे स्वयं ही डरेंगे और स्वाभाव से अर्जक (मेहनत कर के अर्जन करने वाला) होने के कारण हरामखोरी पर यकीन नहीं करेंगे किन्तु इसमें अड़चन ब्राह्मणवाद ही है. क्योकि 'पूजिय विप्र शील गुण हीना, शूद्र न गुण गण ज्ञान प्रवीना', उनके कानो में 24 घंटे गूंजता रहता है इसलिए वे भी इसका शिकार हो जाते है.अतः स्पष्ट है जब तक ब्राह्मणवादको समूल मिटाया नहीं जायेगा और जब तक जीवन के लिए ये मूल्य नहीं बदलेंगे , तब तक भ्रष्टाचार नहीं समाप्त नहीं होगा. इसका समाधान मानववाद में है.
"मानववाद की क्या पहचान- सभी मानव एक सामान,
पुनर्जन्म और भाग्यवाद - इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद

(रामस्वरूप वर्मा जी की  रचना 'मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद ' से )


Wednesday, August 3, 2011

मैं धर्म को व्यक्तिगत आस्था मानता हूं लेकिन इन लोगों ने इसे व्यवस्था बना दिया है- राजेन्द्र यादव

बीते रविवार 31 जुलाई को हंस पत्रिका के 25 साल पूरे होने पर दिल्ली के एक सभागार में आयोजन किया गया. राजेन्द्र यादव से एक बातचीत-

सवाल- इस पच्चीस साल की यात्रा में कोई ऐसा क्षण जिसकी टीस अभी भी मन में बनी हो?
जवाब- कोई ऐसा क्षण नहीं है. जो होता भी है वह समय के साथ भूल जाता है. वक्त बीतने के साथ उसके दंश खत्म हो जाते हैं. पच्चीस साल में आशा के क्षण भी और निराशा के भी क्षण हैं.
सवाल- फिर भी कोई एक ऐसी घटना?
जवाब- जब बाबरी मस्जिद गिरी तब हमारी संपादकीय पर हंगामा हुआ. जब अमेरिका में ट्रेड टावर जलाए गये तो उस वक्त भी हमारी संपादकीय पर हंगामा हुआ. पुलिस केस भी दर्ज करवाया गया. हमने कहा था कि रावण के दरबार में हनुमान पहला आतंकवादी था. औरंगजेब के दरबार में शिवाजी पहला आतंकवादी था. अंग्रेजों के दरबार में भगत सिंह पहला आतंकवादी था. लेकिन क्योंकि हिन्दू धर्म के लोग प्राय: अनपढ़ होते हैं. मूर्ख लोग होते हैं. जढ़ होते हैं इसलिए उन्होंने विवाद पैदा कर दिया.

सवाल- हिन्दू धर्म पर टिप्पणियों को लेकर आप विवादित रहे हैं....

जवाब- धर्म वर्म से हमारा बहुत मतलब नहीं है. मैं अनास्तिक व्यक्ति हूं. लेकिन मैं यह मानता हूं कि जो कुछ जैसा दिया गया है उसको स्वीकार करना बुद्धि का अपमान है. मैंने आपसे कह दिया कि दुनिया इस तरह है और आपने मान लिया. अपनी बुद्धि का इस्तेमाल क्यों नहीं करते? जो जैसा है उसका दूसरा पक्ष लाना हमारी जरूरत है.
सवाल- आप धर्म को व्यवस्था मानते हैं या व्यक्तिगत आस्था?
जवाब- मैं धर्म को व्यक्तिगत आस्था मानता हूं लेकिन इन लोगों ने इसे व्यवस्था बना दिया है.

सवाल- यह दूसरा पक्ष राजेन्द्र यादव बताएं तो स्वीकार करने में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है?
जवाब- ऐसा नहीं है. विरोध भी होता है. लेकिन जहां तक धर्मों की बात है तो सारे धर्म अतीत जीवी हैं. इनके पास भविष्य नहीं है. भविष्य के नाम पर ये अतीत को ही लाएंगे. आज की समाज संरचना के अनुसार हमारा भविष्य क्या होगा इसके लिए पुराण और रामायण तय नहीं करेगा. मैं सख्ती से इसका विरोध करता हूं.

सवाल- लेकिन स्मृतियां अगर अतीत में जाती हैं तो क्या करेंगें?
जवाब- वह स्मृति अलग चीज है. फिर भी अगर वह स्मृति भी हमारे काम की नहीं है तो उसे लादकर हम कहां कहां जाएंगे. भविष्य में यात्रा के लिए जो कुछ गैर जरूरी है उसे छोड़ना होगा फिर वे चाहे जितनी महान या अच्छी ही क्यों न हो.

(साभार - visfot.com)