प्रोफ़ेसर पांडियन, आप बहुत याद आओगे.
समय था जुलाई 2011, जब JNU में मै और
मेरे साथी All India Backward Students’ Forum (AIBSF) की स्थापना के बारे में विचार
विमर्श कर रहे थे. JNU में OBC का आरक्षण लागू नहीं हुआ था और 2008 से JNUSU भी सस्पेंड हो गया था. उस समय प्रोफ़ेसर
पांडियन और स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (SAA-JNU) के संतोष हम सभी से मिलने
आये थे. संगठन की क्या विचारधारा होगी, OBC आरक्षण के मुद्दे से कैसे फैकल्टी और
छात्र समुदाय को जोड़ना चाहिए, इन सब पर पांडियन सर ने एक मार्गदर्शक की तरह हमारी मदद की.
लगातार दो दिनों तक हम विमर्श करते रहे.
उसके बाद मेरा जुड़ाव लगातार बाना रहा. AIBSF के अध्यक्ष पद (2011-2012) पर रहते
हुए मुझे आरक्षण के मुद्दे पर, Viva Voce के सम्बन्ध में पांडियन सर से लगातार मार्ग दर्शन मिलता रहा. वे
हमेशा मित्रवत बाते करते थे और राज्य के चरित्र, पिछडो-दलितों की रहनुमाई करने
वालों की स्वार्थी करतूतों के खिलाफ आगाह करते रहते थे. वे एक उम्दा शिक्षक थे और
एक बेजोड़ लेखक. द्रविड़ राजनीति, सिनेमा कल्चर, सामाजिक न्याय, जाति और राष्ट्रवाद
से सम्बंधित उनके लेख अद्वितीय है. जब
बौद्धिक विमर्श में इ.वी. रामासामी ‘पेरियार’ के योगदान और उपलब्धियों को लगतार
नजरंदाज किया जा रहा था, पांडियन सर ने बौद्धिक वर्चस्व को चुनौती देते हुते
पेरियार के योगदान और गैर-ब्राह्मण बौद्धिक परम्परा का पुनर्पाठ किया. जाति-विमर्श
और राजनीति को वे पाठ्यक्रम का एक अभिन्न हिस्सा मानते थे और खुल कर बहस करते थे.
उनका जाना पूरे बौद्धिक समुदाय के लिए एक अपूर्णीय क्षति है. हमने एक बेहतरीन शिक्षक और मार्गदर्शक खो दिया. प्रोफ़ेसर
पांडियन आप बहुत याद आओगे.