Friday, August 2, 2024

क्या आप देशभक्त रत्नप्पा कुम्भार को जानते है?


भारतीय संविधान सभा के सदस्य, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व सांसद, महाराष्ट्र के विकास पुरुष, महाराष्ट्र सरकार के पूर्व गृह, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री, महाराष्ट्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष थे।


भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया था।


डॉ. रत्नप्पा भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। डॉ. आंबेडकर के साथ भारतीय संविधान के अंतिम मसौदे पर हस्ताक्षर भी किया।


जन्म 15 सितंबर 1909 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के शिरोल तहसील क्षेत्र के नीमशीर गांव में हुआ।उनके पिता का नाम भरमप्पा कुम्भार था।बचपन से ही ब्रिलियंट थे।


उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा कोल्हापुर स्थित राजाराम हाई स्कूल से ग्रहण की। सन 1933 में कोल्हापुर स्थित राजाराम कॉलेज से अंग्रेजी विषय में स्नातक की उपाधि हासिल की। फिर वे कानून की पढ़ाई करने लगे। बाद में पुणे विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि से भी नवाजा था।


डॉ. रत्नप्पा ने 15 फरवरी 1938 प्रजापरिषद नामक संगठन की स्थापना की। इसके बैनर तले वे लोगों को रियासतों के शासकों के खिलाफ लामबंदकरने लगे।


इससे नाराज कोल्हापुर रियासत के शासकों ने 8 जुलाई 1939 को उन्हें और देसाई को गिरफ्तार कर लिया। कोल्हापुर की रियासत ने उन पर जुर्माना लगाया।


रिहा होने के बाद उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसकी वजह से उन्हें छह साल तक भूमिगत भी रहे।

स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनके समर्पण और कार्यों की वजह से लोगों ने उन्हें देशभक्त की उपाधि दे दी जिसकी वजह से उन्हें देशभक्त रत्नप्पा कुम्भार कहा जाने लगा।


महाराष्ट्र के विकास पुरुष थे डा. रत्नप्पा

 देशभक्त रत्नप्पा  ने 1933 में शाहाजी लॉ कॉलेज, 1955 में पंचगंगा कोऑपरेटिव सुगर फैक्टरी, 1957 में डॉ. रत्नप्पा कुम्भार कॉलेज ऑफ कॉमर्स, 1960 में दादा साहेब मग्दम हाई स्कूल, 1961 में नव महाराष्ट्रा कोऑपरेटिव प्रिंटिंग स्थापित किया।


डा. साहब ने 1963 में कोल्हापुर जनता सेंट्रल को-ऑपरेटिव कंज्यूमर स्टोर्स, 1963 में रत्नदीप हाई स्कूल, 1968 में कोल्हापुर जिला शेतकारी वींणकारी सहकारी सूत गिरानी लिमिटेड, 1971 में नाइट कॉलेज ऑफ आर्ट्स ऐंड कॉमर्स कोल्हापुर और 1975 में कोल्हापुर एल्यूमिना इंडस्ट्री की स्थापना की।


देशभक्त रत्नप्पा शिरोल विधान परिषद सीट से करीब 28 साल तक विधायक रहे। वह 1962 से 1982 तक लगातार 20 साल तक विधान परिषद सदस्य रहे। वह 1974 से 1978 तक महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी रहे। 

 उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1985 में  पद्मश्री अवार्ड से नवाजा।


प्रजापति समाज के आइकॉन


भारत की सर्वाधिक श्रमजीवी जातियों में से एक कुम्भार जाति के लिए यह गौरव की बात है कि डॉ रत्नप्पा उनके पूर्वज थे, जिन्होंने देश और समाज के लिए इतना काम किया है। कोल्हापुर रियासत के खिलाफ़ राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में भी उनका बहुत अधिक योगदान है।